ओज़ोन

क्या है ओज़ोन?

ओज़ोन (Ozone-O3) ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है जो वायुमंडल में बेहद कम मात्रा में पाई जाती हैं। पृथ्वी की सतह से 30-32 किमी. की ऊँचाई पर इसकी सांद्रता अधिक होती है। यह हल्के नीले रंग की तीव्र गंध वाली विषैली गैस है।

पृथ्वी का सुरक्षा कवच है ओज़ोन

ओज़ोन परत को पृथ्वी का सुरक्षा कवच कहा जाता है, लेकिन पृथ्वी पर लगातार बढ़ रहे प्रदूषण के कारण इस कवच की मज़बूती लगातार कम होती जा रही है। जैसा कि हम बता चुके हैं कि ओज़ोन का एक अणु ऑक्सीजन के तीन अणुओं के जुड़ने से बनता है। इसका रंग हल्का नीला होता है और इससे एक विशेष प्रकार की तीव्र गंध आती है। भूतल से लगभग 50 किलोमीटर की ऊँचाई पर वायुमंडल में ऑक्सीजन, हीलियम, ओज़ोन, और हाइड्रोजन गैसों की परतें होती हैं, जिनमें ओज़ोन परत पृथ्वी के लिये एक सुरक्षा कवच का काम करती है क्योंकि यह परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैगनी किरणों से पृथ्वी पर मानव जीवन की रक्षा करती है। मानव शरीर की कोशिकाओं में सूर्य से आने वाली इन पराबैगनी किरणों को सहने की शक्ति नहीं होती।

क्यों हो रहा ओज़ोन परत का क्षरण?

ओज़ोन परत में होने वाले क्षरण का कारण मनुष्य खुद है, जिसके क्रियाकलापों से जीव-जगत की रक्षा करने वाली इस परत को नुकसान पहुँच रहा है। मानवीय क्रियाकलापों ने वायुमंडल में कुछ ऐसी गैसों की मात्रा को बढ़ा दिया है जो पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करने वाली ओज़ोन परत को नष्ट कर रही हैं। ओज़ोन परत में हो रहे क्षरण के लिये क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इसके अलावा हैलोजन, मिथाइल क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि रासायनिक पदार्थ भी ओज़ोन को नष्ट करने में योगदान दे रहे हैं। क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस का उपयोग हम मुख्यत: अपनी दैनिक सुख सुविधाओं के उपकरणों में करते हैं, जिनमें एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, फोम, रंग, प्लास्टिक इत्यादि शामिल हैं।

क्या है मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल?:

संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में ओज़ोन परत में हो रहे क्षरण से उत्पन्न चिंताओं के निवारण हेतु कनाडा के मॉन्ट्रियल में 16 सितंबर, 1987 को विभिन्न देशों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए जिसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल कहा जाता है। इसका क्रियान्वयन 1 जनवरी, 1989 को हुआ। इस प्रोटोकॉल में ऐसा माना गया है कि वर्ष 2050 तक ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले तत्त्वों के उत्पादन पर नियंत्रण कर लिया जाएगा। इस सम्मेलन में यह भी तय किया गया कि ओज़ोन परत को नष्ट करने वाले क्लोरो फ्लोरो कार्बन जैसी गैसों के उत्पादन एवं उपयोग को सीमित किया जाएगा। भारत ने भी इस प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किये हैं। वर्ष 1990 में मॉन्ट्रियल संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने वर्ष 2000 तक क्लोरो फ्लोरो कार्बन और टेट्रा क्लोराइड जैसी गैसों के प्रयोग को भी पूरी तरह से बंद करने की शुरुआत की थी। मॉन्ट्रियल प्रोटोकाल वस्तुतः ओज़ोन परत के संदर्भ में एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसमें ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले पदार्थों को कम करने पर ज़ोर दिया जाता है।.

विश्व ओज़ोन दिवस

ओज़ोन एक प्राकृतिक गैस है, जो वायुमंडल में बहुत कम मात्रा में पाई जाती है। पृथ्वी पर ओज़ोन दो क्षेत्रों में पाई जाती है- ओज़ोन अणु वायुमंडल की ऊपरी सतह में एक बेहद पतली परत बनाते हैं। इसी को ओज़ोन परत कहते हैं तथा वायुमंडल की कुल ओज़ोन का 90 प्रतिशत यहीं होता है। इसी ओज़ोन परत के क्षरण की समस्या पर विश्व का ध्यान आकर्षित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र ने 16 सितंबर का दिन विश्व ओज़ोन दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। वर्ष 1987 में इसी दिन ओज़ोन क्षरण कारक पदार्थों के निर्माण और खपत में कमी संबंधी मांसहमति पर विभिन्न देशों ने मॉन्ट्रियल में हस्ताक्षर किये थे। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा गठित समिति ने क्लोरो फ्लोरो कार्बन में चरणबद्ध कमी करने के लिये समझौते का मसौदा तैयार किया, जिसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकाल कहा जाता है। यह वर्ष 1987 से प्रभावी है और अब तक लगभग 150 देश इस पर हस्ताक्षर कर चुके हैं तथा इसके नियमों को स्वीकार कर चुके हैं।